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ज्ञानवापी मस्जिद अभी ख़बरों में
ज्ञानवापी मस्जिद:-
भारत के उत्तर प्रदेश के वाराणसी में स्थित है। इसका निर्माण औरंगजेब ने 1669 में एक पुराने शिव मंदिर को तोड़कर किया था।
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वास्तुकला
शैली:-मुगल वास्तुकला (इंडो-इस्लामिक वास्तुकला का हिस्सा)
मस्जिद से पहले का इतिहास:-
इस स्थान पर बहुत पहले हिंदू देवता शिव को समर्पित एक विश्वेश्वर मंदिर का निर्माण अकबर के ‘दरबार’ के नवरत्न में से एक टोडर मल ने 16वीं शताब्दी के अंत में ब्राह्मण विद्वान नारायण भट्ट के साथ मिलकर किया था। वास्तुशिल्प इतिहासकार माधुरी देसाई की परिकल्पना है कि मंदिर प्रमुख नुकीले मेहराबों के बने थे।
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विवाद :- इतिहासकारों का मानना है।
[1] 1194 में मुहम्मद गौरी जो एक क्रूर शासक था। उसने काशी स्थित मंदिर को लूटकर तुड़वा दिया था।
[2] एक बार जैसे-तैसे मंदिर का निर्माण हुआ ।
[3] फिर से जब मंदिर बना लिया गया तो 1447 में जौनपुर के शर्की सुल्तान महमूद शाह द्वारा मंदिर को तुड़वा कर मस्जिद बनवाई गई।
[4] 1669 में औरंगजेब के आदेश से मंदिर को तोड़कर यहां पर मंदिर के आधे हिस्से पर जामा मस्जिद बनाई गई। हालांकि मस्जिद को अलग से बनवाकर मंदिर की नींव और मलबे का ही इसमें उपयोग किया गया था।
[5] मंदिर टूटने और मस्जिद बनने के 125 साल तक कोई मंदिर नहीं बना था।
[6] इसके बाद साल 1735 में इंदौर की महारानी देवी अहिल्याबाई ने ज्ञानवापी परिसर के पास काशी विश्वनाथ मंदिर बनवाया।
[7] ज्ञानवापी मस्जिद का पहला जिक्र 1883-84 के राजस्व दस्तावेजों में जामा मस्जिद ज्ञानवापी के तौर पर दर्ज किया गया।
[8] 1809 में हिन्दू समुदाय के लोगों द्वारा ज्ञानवापी मस्जिद को उन्हें सौंपने की मांग की।
[9] 30 दिसंबर 1810 को बनारस के तत्कालीन जिला दंडाधिकारी मिस्टर वाटसन ने ‘वाइस प्रेसीडेंट इन काउंसिल’ को एक पत्र लिखकर ज्ञानवापी परिसर हिन्दुओं को हमेशा के लिए सौंपने को कहा था, लेकिन यह कभी संभव नहीं हो पाया।
[10] 1936 में दायर एक मुकदमे पर वर्ष 1937 के फैसले में ज्ञानवापी को मस्जिद के तौर पर स्वीकार किया गया।
[11] 1984 में विश्व हिन्दू परिषद् ने कुछ राष्ट्रवादी संगठनों के साथ मिलकर ज्ञानवापी मस्जिद के स्थान पर मंदिर बनाने के उद्देश्य से राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया।
[12] 1991 में हिन्दू पक्ष की ओर से हरिहर पांडेय, सोमनाथ व्यास और प्रोफेसर रामरंग शर्मा ने मस्जिद और संपूर्ण परिसर में सर्वेक्षण और उपासना के लिए अदालत में एक याचिका दायर की।
[13] मस्जिद सर्वेक्षण के लिए के लिए दायर की गईं याचिका के बाद संसद ने उपासना स्थल कानून बनाया।
[14] आदेश दिया कि 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे में नहीं बदला जा सकता।
[15] 1993 में विवाद के चलते इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्टे लगाकर यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया।
16] 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश की वैधता छह माह के लिए बताई।
[17] 2019 में वाराणसी कोर्ट में फिर से इस मामले में सुनवाई शुरू हुई।
[18] 2021 में फास्ट ट्रैक कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद के पुरातात्विक सर्वेक्षण की मंजूरी दी। [19] 2022 में कोर्ट के आदेश के अनुसार ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे का काम पूरा हुआ।
वेबसाइट- 1194 हिस्ट्री https://www.drishtiias.com/hindi/to-the-points/paper1/muhammad-gho
सार
ज्ञानवापी Case:
इलाहाबाद कोर्ट ने तीन अगस्त 2023 को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का सर्वेक्षण करने की अनुमति दे दी है। साल 1991 से शुरू हुई ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर कानूनी लड़ाई…
ज्ञानवापी मस्जिद पर शोध के परिणाम
(1) ज्ञानवापी मस्जिद का आर्किटेक्चर मिश्रण है। मस्जिद के गुंबद के नीचे मंदिर के स्ट्रक्चर जैसी दीवार नजर आती है और मस्जिद के खंभे भी हिंदू मंदिर शैली में बने हुए हैं।
(2) 1991 में काशी विश्वनाथ मंदिर के पुरोहितों के वंशजों ने वाराणसी सिविल कोर्ट में याचिका दायर की। याचिका में कहा कि मूल मंदिर को 2050 साल पहले राजा विक्रमादित्य ने बनवाया था।
(3) 1669 में औरंगजेब ने इसे तोड़कर मस्जिद बनवाई। याचिका में कहा गया कि मस्जिद में मंदिर के अवशेषों का इस्तेमाल हुआ इसलिए यह जमीन हिंदू समुदाय को वापस दी जाए।
(4) वादी पक्ष का दावा है कि मौजूद ज्ञानवापी आदि विशेश्वर का मंदिर है, जिसका निर्माण 2,050 साल पहले राजा विक्रमादित्य ने करवाया था।
(5) काशी विश्वनाथ मंदिर के तोड़े गये हिस्से में मंदिर के चिन्ह और गर्भगृह में शिवलिंग होने की बात उठती रही है।
(6) ब्रिटिश लाइब्रेरी, लन्दन; लाइब्रेरी ऑफ कांग्रेस, वाशिंगटन; जे. पॉल गेट्टी म्यूज़ियम, कैलिफोर्निया, इत्यादि में विदेशी फोटोग्राफरों द्वारा सन् 1859 से 1910 के मध्य लिए गए ज्ञानवापी के अनेक चित्र संगृहीत हैं।
(7) एक विदेशी फोटोग्राफर सैमुअल बॉर्न के द्वारा फोटो 1863-1870 के बीच लिया था। इसके कैप्शन में लिखा है “ज्ञानवापी या ज्ञान का कुआं” बनारस तस्वीर में हनुमान जी की मूर्ति, घंटी एवं खंभों की नक्काशी दिखाई दे रही है।
(8) ज्ञानवापी को लेकर हिन्दू पक्ष का दावा है कि ज्ञानवापी विवादित ढांचे की जमीन के नीचे 100 फीट ऊंचा आदि विशेश्वर का स्वयंभू ज्योतिर्लिंग है।
(9) विवादित ढांचे के दीवारों पर देवी देवताओं के चित्र हैं। हाल ही में मस्जिद के सर्वे में यह खुलासा हुआ है कि तहखानों में एक शिवलिंग है। तहखाने में स्तंभ में मूर्तियां अंकित है। वहां कई मूर्तियां और कलश के होने की बात भी कही जा रही है।
(10) ज्ञानवापी मस्जिद की दीवारों पर स्वास्तिक, त्रिशूल और ॐ के निशान पाए गए हैं। इसमें मगरमच्छा का शिल्प है। जहां नमाज पढ़ी जाती है (11) वहां पर दीवारों में जगह-जगह श्री, ॐ आदि लिखे हुए हैं।
(12) स्तंभ अष्टकोण में बने हुए हैं जो कि हिन्दू मंदिरों में पाए जाते हैं।
(13) मस्जिद की ओर मुंह किए हुए नंदी इस बात को दर्शाता है कि उस ओर शिवलिंग है।
(14) मस्जिद परिसर में स्थित श्रृंगार गौरी मंदिर का होना इसका बाद का सबूत है।
(15) ज्ञानवापी मस्जिद का जो मुख्य गुंबद है उसके नीचे भी एक गुंबद है दोनों के बीच करीब 6 से 7 फुट की गैप है।
(16) नीचे के गुब्बद को गुम्बद नहीं कहा जा सकता क्योंकि वह शंकुआकार है। ऐसा हिन्दू स्थापत्य शैली में ही बनता है। गुंबद में जो नीचे का भाग है वह मंदिर का मूल स्ट्रक्चर है।
शिव मंदिर होने के दावे पर क्या कहते हैं प्राचीन ग्रंथ :-
[1] हिन्दू पुराणों अनुसार काशी में विशालकाय मंदिर में आदिलिंग के रूप में अविमुक्तेश्वर शिवलिंग स्थापित है। इसका उल्लेख महाभारत और उपनिषद में भी किया गया है।
[2] ईसा पूर्व 11वीं सदी में राजा हरीशचन्द्र ने जिस विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था उसका सम्राट विक्रमादित्य ने अपने कार्यकाल में पुन: जीर्णोद्धार करवाया था
[3] शिव पुराण और लिंगपुराण में 12 ज्योतिर्लिंगों के बारे में उल्लेख मिलता है जिसमें काशी का ज्योतिर्लिंग प्रमुख माना गया है।
[4] भगवान शिव के त्रिशुल की नोक पर बसी है शिव की नगरी काशी। भगवान शंकर को यह गद्दी अत्यन्त प्रिय है इसीलिए उन्होंने इसे अपनी राजधानी एवं अपना नाम काशीनाथ रखा है। [5] विष्णु ने अपने चिन्तन से यहां एक पुष्कर्णी का निर्माण किया और लगभग पचास हजार वर्षों तक वे यहां घोर तपस्या करते रहे।
[6] पतित पावनी भागीरथी गंगा के तट पर धनुषाकारी बसी हुई है जो पाप-नाशिनी है।
[7] कथित मस्जिद और नए विश्वनाथ मंदिर के बीच 10 फीट गहरा कुआं है, जिसे ज्ञानवापी कहा जाता है। इसी कुएं के नाम पर मस्जिद का नाम पड़ा।
[8] स्कंद पुराण में कहा गया है कि भगवान शिव ने स्वयं लिंगाभिषेक के लिए अपने त्रिशूल से ये कुआं बनाया था। कहा हैं कि कुएं का जल बहुत ही पवित्र है जिसे पीकर व्यक्ति ज्ञान को प्राप्त हो जाता है।
[9] ज्ञान यानी बोध होना और वापी यानी जल। यह भी कहते हैं कि शिवजी ने यहीं अपनी पत्नी पार्वती को ज्ञान दिया था, इसलिए इस जगह का नाम ज्ञानवापी या ज्ञान का कुआं पड़ा।
[10] ज्ञानवापी का जल श्री काशी विश्वनाथ पर चढ़ाया जाता था।
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हनुमान चालीसा गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित
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